एक नज़्म
एक नज़्म कल वो मुझे कितना इंतज़ार करा रही थी . . . और मेरे हाथ पर बंधी घड़ी की सुई डगमगा रही थी . . . कभी इधर जा रही थी , कभी उधर जा रही थी . . . गौर से देखा तो जाना , वो घड़ी ख़राब थी और ग़लत वक़्त बता रही थी . . .।। शाम भी जब ढलती जा रही थी . . . क्या वो मुझसे खफा थी , जो इस वक़्त बे-वक़्त आ रही थी . . . ।। Sunny May 06th , 2020