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एक नज़्म

                      एक नज़्म       कल वो मुझे कितना इंतज़ार करा रही थी . . .       और मेरे हाथ पर बंधी घड़ी की सुई डगमगा रही थी . . .       कभी इधर जा रही थी ,       कभी उधर जा रही थी . . .             गौर से देखा तो जाना ,       वो घड़ी ख़राब थी और ग़लत वक़्त बता रही थी . . .।।       शाम भी जब ढलती जा रही थी . . .       क्या वो मुझसे खफा थी ,       जो इस वक़्त बे-वक़्त आ रही थी . . . ।।                               Sunny                              May 06th , 2020        

Shayari

  कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती (बर नहीं आती = पूरी नहीं होती), (सूरत = उपाय) मौत का एक दिन मु'अय्यन है नींद क्यों रात भर नहीं आती (मु'अय्यन = तय, निश्चित) आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी अब किसी बात पर नहीं आती है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ वर्ना क्या बात कर नहीं आती हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी कुछ हमारी ख़बर नहीं आती जीते हैं आरज़ू में मरने की मौत आती है पर नहीं आती काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब' शर्म तुमको मगर नहीं आती -मिर्ज़ा ग़ालिब