पंछी
__ पंछी__ Part-1 आज शाख पर बैठा पंछी नजर नही आता । जिसे अक्सर हम अपनी बालकनी से देखा करते थे...।। जो हर रोज़ सुनाया करता था अपने लफ्सो की चहक, और हर रोज़ हम भी सुना करते थे। उड़े होश तब मेरे जब पड़ोस मे उसका हाल जाना - जिस शाख पे बैठ करता था... जिस शाख पे गाया करता था... अपनों ने उसको यू मरा, वो जब भी गया करता था... बस तुझे बुलाया करता था... एक गीत वो गया करता था... बस तुझे बुलाया करता था...।। Part-2 एक दिन पंछी के दोस्त ने पंछी से पूछ ही लिया… तू किसे बुलाया करता है…? और क्यों तू गाया करता है…? मैं उसे बुलाया करता हूं… जो यही पास मे रहती है… जो कभी-कभी ये कहती है… तुम दिल के कितने सच्चे हो…! तुम कितने अच्छे लगते हो…! [पंछी के दोस्त ने ये बात लड़की के घर पर बता दी-] अगले दिन जब वो आए… पंछी को फिर खूब समझाया… पागल पंछी समझ ना पाया… पंछी के सीने पर जब लगी गोली… खिल गई फिर खून की होली… क्या ख़त्म हुई ये प्रेम कहन...